
मानसश्री गोपाल राजू
रूड़की – २४७ ६६७
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सहानुभूति दिखलाना एक ऐसा मनोभाव है जो िुुःख-ििद िेखकर स्विुः उपजने लगिा है। ककसी की िुर्दटना िेखी, ककसी का ववद्रोह िेखा, ककसी को ििद अथवा भूख आदि से िड़पिे िेखा िब एक बार को, यदि वैष्णव मि का है, िो मन द्रववि हुए बबना नह ीं रहिा।
अींग्रेजी में इसको (Sympathy) कहिे हैं। इसके ववपर ि ऐसे कठोर दिल वाले भी हैं जो ककसी के िुुःख-ििद से ववक्षप्ि ह नह ीं होिे। ककसी का गला काटना, ककसी की हत्या करना, ककसी असहाय को सिाना उसे कष्ट पहुुँचाना बहुि ह
सामान्य सी बािें होिी हैं उनके ललए। ऐसी मनुःस्स्थति वालों की बाि िो जाने िेिे हैं। परन्िु यदि कठोर से कठोर हृिय और मानलसकिा वाला व्यस्ति ककसी कष्टकार स्स्थति, उसके िुुःख ििद अथवा वेिना आदि को स्वयीं के ऊपर र्दटि होने की कल्पना करे और उस वेिनामयी मनुःस्स्थति में कल्पना भी कर लें कक िूसरे का कष्ट, पीड़ा वेिना कैसे िूर हो िो इसको अींग्रेजी में (Empathy) कहिे हैं।
ऐम्पेथी में व्यस्ति के अन्िर स्विुः एक प्राकृतिक अलभव्यस्ति का प्रािुदभाव होने लगिा है। उसके मन में िूसरे के प्रति सहायिा, सहयोग, चचींिा का भाव उत्पन्न होने लगिा है। जो लोग िूसरे के ललए ककसी भी प्रकार के कायद करने अथवा करवाने से जुड़े हुए हैं उनमें यदि िूसरे के प्रति वास्िव में सहयोग, सहायिा का भाव इस अलभप्राय से तिपा हुआ है कक सहायिा वह िूसरे के िुुःख और ििद को िूर करने के ललए नह ीं वरन् अपने स्वयीं के अथवा अपने पररजनों के कष्टों को िूर करने के उद्िेश्य से कर रहा है। िो इस कमद में उसको जो सुखानुभूति होगी वह अनन्िान्ि और चचरस्थाई होगी। ऐम्पेथी के मनोभाव से ककया गया कायद यदि प्रत्येक व्यस्ति अींगीकार कर ले िब िो धरिी ह स्वगद बन जाएगी।
वैद्य, डॉतटर, हक़ीम, समास्जक कायों में ललप्ि लोग, व्यवसायी वगद, ज्योतिष, िींत्र, मींत्र कमद काण्ड आदि के व्यवसाय में ललप्ि लोगों के ललए िो मन में यह भाव अवश्य ह रहना चादहए कक वह िूसरे का िुुःख-ििद स्वयीं के ऊपर अनुभूि होकर अपने कमद क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। इसके पररणाम िो सुन्िरिम होंगे ह साथ ह साथ स्वयीं को भी एक दिव्य आनन्ि की अनुभूति होगी।