Instead of shopping, we analyze logically and intellectually | Instead of shopping, we analyze logically and intellectually | Instead of shopping, we analyze logically and intellectually | Instead of shopping, we analyze logically and intellectually | Instead of shopping, we analyze logically and intellectually | Instead of shopping, we analyze logically and intellectually | Instead of shopping, we analyze logically and intellectually | Instead of shopping, we analyze logically and intellectually

शुद्ध श्री बजरंग बाण Click Download For Better Look

बजरंग बाण, bajrang baan, advaitacharya ji, gopal raju, shudh bajrang baan,

 

|| सीता राम ||

श्री अद्वैताचार्य जी महाराज की विरचित पुस्तक, साधना सिद्धि से शुद्ध बजरंग बाण उपलब्ध करवा रहा हूँ | लखनऊ के श्री अशोक श्रीवास्तव (Mob. 9415567319), महाराज जी के परम प्रिय शिष्य, ने पुस्तक देखकर मेहनत से स्वयं टाइप करके मुझे जनहितार्थ ये उपलब्ध करवाया है | पुनः संशोधन करके, PDF फ़ाइल में दे रहा हूँ | श्री बजरंग बाण पाठ से अनेकों लोगों के कार्य सिद्ध हुए हैं, इसमें न तो कोई अतिशयोक्ति है और न ही कोई संशय |

 

कार्य की सिद्धि के लिए कलिकाल में इससे अच्छा अन्य कोई उपाय नहीं है, ऐसा हमारे महाराज जी कहा करते थे | उस समय जो बजरण बाण हमें उपलब्ध थे, या तो त्रुटिपूर्ण थे और या आधे-अधूरे | शुद्ध बजरंग बाण मुझे महाराज जी द्वारा 70 के दशक में मिला था | मैंने इसका अनुष्ठान किया, अन्य को भी करवाया, जिसने भी संयम और पूर्ण आस्था से किया, उन सबको चमत्कारिक रूप से वांछित फल मिला |

 

बजरंग बाण का पाठ नित्य करने का नियम बना लें | संयम, आस्था और समय हो तो अनुष्ठान भी करें | महाराज जी कहते थे कि अगर अनुष्ठान के रूप में बजरंग बाण कर रहे हैं, तब  अपने गुरुजनों से परामर्श, उसको करने के दिशा-निर्देश अवश्य ले लें |

एक बात का ध्यान रखें किसी के भी अनहित की भावना से तो बिल्कुल भी इसका पाठ न करें |

 

 

अनुष्ठान कैसे करें, इसके लिए यू ट्यूब में महाराज जी द्वारा बनवाए गोपाल राजू के अन्य वीडिओ भी देख सकते हैं | एक का लिंक है:

At: @gopalraju

 

टाइटल -

Bajrang Baan Anusthan | बजरंग बाण अनुष्ठान का सरलतम उपाय | चमत्कारी बजरंग बाण प्रयोग

 

https://youtu.be/uiF-FjHHvF8

 

साधना सिद्धि पुस्तक के पन्ने भी अंत मे दे रहे हैं, कहीं हमसे त्रुटि बन गई हो तो कृपया संशोधन कर लें |

 

एक महत्वपूर्ण बात बीज मंत्रों से संबंधित | उच्चारण में कहीं त्रुटि न हो | अब क्यूंकि बजरंग बाण में बीज भी आते हैं, उनका शुद्ध उच्चारण किसी योग्य विद्वान से अवश्य कर लें | जो हमारे संज्ञान में आया, हो सकता है कि कोई सहमत न हो, उसका एक वीडिओ भी बना दिया है | मन है तो यू ट्यूब में वो भी देख सकते हैं | लिंक है:

 

टाइटल -

ह्रींग ह्रीम या हरीम (Hreeng Hreem Or Hareem) ? क्या है शुद्ध उच्चारण ?

Click at:

 

https://youtu.be/_HGbD7CxTPI

 

 

|| ध्यान श्लोक ||

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

 

हं हनुमते नमः  

श्री गुरुदेव भगवान की जय

श्री बजरंग-बाण

 

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करे सन्मान |

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान ।।

 

जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुनि लीजै  प्रभु अर्ज हमारी ।।

 

जन के काज विलम्ब न कीजै ।  आतुर दौरि महासुख दीजै ॥

 

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा । सुरसा बदन पैठि बिस्तारा

 

आगे जाइ लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ॥

 

जाई विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ॥

 

बाग उजार सिन्धु मँह बोरा । अति आतुर यम कातर तोरा ॥

 

अक्षय कुमार को मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ॥

 

लाह समान लंक जरि गई । जय जय ध्वनि सुरपुर में भई ॥

 

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी ॥

 

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुर होइ दुख करहु निपाता ॥

 

जय गिरिधर जय जय सुख सागर | सुर समूह समरथ भट नागर ॥

 

ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले । बैरिहि मारु बज्र सम कीले ॥

 

गदा बज्र ले बैरिहिं मारो । महाराज निज दास उबारौ ||

 

सुनि हंकार हुंकार दै धावो | वज्र गदा हनु विलम्ब न लाओ ॥

 

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीशा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥

 

सत्य होहु हरि सत्य पाइके । राम दूत धरु मारु धाइके ॥

 

जय हनुमन्त अनन्त अगाधा । दुख पावत जन केहि अपराधा ।।

 

पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत है दास तुम्हारा ।।

 

वन उपवन जल थल गृह माँहीं । तुम्हारे बल हम डरपत नाहीं ॥

 

पाँय परौं कर जोरि मनावों । अपने काज लागि गुण गावों

 

जय अंजनी कुमार बलवन्ता । शंकर स्वयं वीर हनुमन्ता  ॥

 

बदन कराल दनुज कुल घालक । भूत पिशाच प्रेत उर शालक ॥

 

भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बैताल वीर मारी मर ।।

 

इन्हें मारु तोहि शपथ राम की ।  राखु नाथ मर्याद नाम की ॥

 

जनक सुता पति दास कहावों । ताकी शपथ विलम्ब न लावों ॥

 

जय जय जय ध्वनि होत अकाशा |  सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ॥

 

शरण शरण कर जोरि मनावों । यहि अवसर अब केहि गोहरावों ।।

 

उठु उठु उठु तोहिं राम दोहाई ।  पाँपरौं कर जोरि मनाई ।

 

ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ॥

 

ॐ हं हं हाक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥

 

अपने जन को कस न उबारो । सुमिरत होत अनन्द हमारो ॥

 

ताते विनती करौं पुकारी । हरहु सकल प्रभु विपति हमारी ।।

 

ऐसो बल प्रभाव प्रभु तोरा । कस न हरहु दुख संकट मोरा ॥

 

हे बजरंग बाण सम धावो । मेटि सकल दुख दरश दिखाओ ।।

 

हे कपिराज काज कब ऐहौ अवसर चूकि अन्त पछितैहौ

 

जन की लाज जात ऐहि बारा । धावहु हे कपि  पवन कुमारा ॥

 

जयति जयति जय जय हनुमाना | जयति जयति गुण ज्ञान निधाना ||

 

जयति जयति जय जय कपिराई । जयति जयति जय जय सुखदाई ॥

 

जयति जयति जय राम पियारे । जयति जयति जय सिया दुलारे ||

 

जयति जयति मुद मंगल दाता । जयति जयति त्रिभुवन विख्याता ।।

 

यहि प्रकार गावत गुण शेषा ।  पावत पार नहीं लवलेशा ॥

 

नाम रूप सर्वत्र समाना । देखत रहत सदा हरषाना

 

विधि शारदा सहित दिन राती । गावत कपि के गुण गण पाती ।।

 

तब सम नहीं जगत बलवाना । करि विचार देखेउँ  विधि नाना ॥

 

यह जिय जानि शरण तब आई । ताते विनय करौं  चित लाई ॥

 

सुनि कपि आरत वचन हमारे । मेटहुँ सकल दुःख भ्रम भारे ॥

 

यहि प्रकार विनती कपि केरी । जो जन करै लहै सुख ढेरी।।

 

या के पढ़त वीर हनुमाना । धावत बाण तुल्य बलवाना॥

 

मेंटत आय दुःख क्षण माहीं । दे दर्शन रघुपति ढिग जाहीं ॥

 

पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करै प्राण की ॥

 

दीठ मूठ टोनादिक नासै । पर कृत यन्त्र मन्त्र नहिं त्रासै ॥

 

भैरवादि सुर करे मिताई । आयसु मानि करे सेवकाई ॥

 

प्रण कर पाठ करे मन लाई । अल्प मृत्यु गृह दोष नसाई ॥

 

आवृत ग्यारह प्रति-दिन जापै | ताकी छाँह काल नहिं चापै ॥

 

दै गुग्गुल की धूप हमेशा । रै  पाठ मन मिटे कलेशा ॥

 

यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ॥

 

शत्रु समूह मिटै सब आपै । देखत ताहि सुरासुर कापै॥

 

तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई । रहैं सदा कपिराज सहाई ॥

 

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान |

तेहि के कारतुरत ही, सिद्धि करै हनुमान ||

 

अकिंचन निरीह गोपाल राजू

FEEDBACK

Name
Email
Message