गोपाल राजू की पुस्तक 'सरलतम साधना तंत्र' से
मानसश्री गोपाल राजू
अ.प्रा. वैज्ञाननक
ससववल लाइन्स
रुड़की - 247 667
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सरलतम साधना तंत्र से सांसररक दुुःखों से मुक्तत पाने के सलए योगगनी साधना एक सम्पूर्ण साधना मानी गयी है। माता, बहन, पुत्री आदद क्जस भाव से उनकी साधना-उपासना की जाए उस रूप में ही सदैव प्रसन्न
होकर वह साधक का कल्यार् करती हैं। परन्तु सवणश्रेष्ठ यह होता है कक साधक ककसी एक रूप ववशेष में ही योगगनी साधना करें।
योगिनियों के िाम
योगननयााँ अनेक रूप और नाम की अध्यात्म, योग तथा अन्य गुह्य ववषयों में चगचणत हैं जैसे योग साधक का योगी इसी प्रकार योग सागधका को सामान्यतुः लोग योगगनी सम्बोगधत कर देते हैं। ज्योनतष शास्त्र में जैसे जातक की ववंशोत्तरी दशा, अष्टोत्तरी दशा, चर दशा, महादशा आदद दशाएं जन्म से जीवन के अक्न्तम समय तक क्रमशुः एक ननक्चचत क्रम में आती रहती हैं, इसी प्रकार योगगनी दशाएं भी जीवन में ननरन्तर घदटत होकर प्रभावी रहती हैं। कुछ योगननयााँ वह हैं जो महाववधाओें के साथ ननवास करती हैं।कुछ वह हैं जो साधना करते-करते शरीर त्याग देती हैं और साधना पूर्ण नहीं कर पातीं अथवा क्जनकी साधना पूर्ण हो जाती है परन्तु ककन्हीं त्रुदट के कारर् उनकी सद्गनत नहीं हो पाती अथवा उनका पुनजणन्म नहीं हो पाता। कुछ शक्ततयों के नाम ववशेष जो
संख्या में कुल 64 हैं को भी योगगनी कहते हैं। तंत्र क्षेत्र में यह 64 योगगननयों के नाम से ववख्यात हैं। इनकी साधनाओं का सरल वववरर् मैंने अपनी पुस्तक 'तंत्र साधना' में भी ददया है।
प्रस्तुत लेख में जातक दशा चकक्रर्ी योगगनयों का सरली करर् दें रहा हूाँ। योगगनी दशाओं भोग का एक ननक्चचत समय ननधाणररत है। ज्योनतष शास्त्र की दशाओं की तरह योगगनी दशाएं भी अपने समय काल में सुख और दुुःख का जातक को उनके कमाणनुसार फल देती हैं। योगगनी दशाओं कक कुल संख्या 8 है। इनमें से कोई ससद्ध दानयनी है, कोई मंगलकारक है, कोई कष्टकारी है, कोई सफलता प्रदायक आदद है। जीवन की सफलता के सलए यदद इनकी साधना कर ली जाए तो साधक के सलए यह बहुत ही भाग्यशाली ससद्ध होती हैं। जन्म पत्री में क्जस योगगनी की दशा चल रही है उसकी पूजा-अचणना करने की सरलतम ववगध पाठकों के लाभाथण दे रहा हूाँ।
योगगनी अत्यन्त सामान्य से ननयमानुसार ननम्न प्रकार से सुख-दुुःख अपनी दशा में देती हैं-
1. मंिला - मंगला देवी की कृपा क्जस व्यक्तत पर हो जाती है उसको हर प्रकार के सुखों से सम्पन्न कर देती हैं। यथाभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्तत मंगल ही मंगल भोगता है।
2. प ंिला - वपंगला देवी की कृपा से सारे ववघ्न शांत हो जाते हैं। धन-धान्य और उन्ननत के मागण प्रशस्त होते हैं।
3.धान्या - धान्या देवी की कृपा से धन-धान्य की कभी क्षनत नहीं होती है।
4. भ्रामरी - यदद भ्रामरी दशा में देवी की कृपा हो जाए तो शत्रु पक्ष पर ववजय, समाज में मान-सम्मान तथा अनेक लाभ के अवसर आने लगते हैं।
5. भद्रिका - शत्रु का शमन और जीवन में आए समस्त व्यवधान समाप्त होने लगते हैं, यदद देवी की कृपा हो जाए।
6. उल्का - कायों में ककसी भी प्रकार से यदद व्यवधान आ रहे हैं और अपनी दशा में उल्का देवी की व्यक्तत पर कृपा हो जाए तो तत्काल व्यक्तत के समस्त कायों में गनत आने लगती है।
7. सिद्धा - ससद्धा दशा में पररवार में सुख-शाक्न्त, कायण की ससवद्ध, यश, धन लाभ आदद में आचचयणजनक रूप से फल समलने लगते हैं। परन्तु सम्भव यह उस दशा में ही सम्भव है जब देवी की कृपा हो जाए।
8. िंकटा - यथानाम रोग, शोक और संकटों के कारर् इस दशा का समय काल व्यक्तत को त्रस्त करता है। संकटों से मुक्तत के सलए मातृ रूप में योगगनी की पूजा करें तो देवी की कृपा होने लगती है।
योगगनी दशाओं को अनुकूल बनाने के सलए यथा भाव, सुववधा और समय ननम्न प्रकार से साधना करें।
ककसी शुतल पक्ष की सप्तमी नतगथ से पूर्र्णमा तक प्रत्येक योगगनी दशा के कारक ग्रह के ददन से सम्बक्न्धत योगगनी दशा के कारक ग्रह के पांच-पांच हजार मंत्र पूरे कर लें। संकटा दशा के कारक ग्रह के सलए रवववार राहु के सलए तथा मंगलवार केतु के सलए चुनें। इसी प्रकार मंगला के कारक ग्रह चन्रमा के सलए सोमवार, वपंगला के सलए रवववार, धान्या के कारक ग्रह गुरू के सलए गुरूवार, भ्रामरी के मंगल के सलए मंगलवार, भदरका के ग्रह बुध के सलए
बुधवार, उल्का के शनन ग्रह के सलए शननवार और ससद्धा के सलए शुक्रवार चुनें।
योगगनी दशाओं का कुल समय काल 1 वषण से आरम्भ होकर क्रमशुः 2, 3, 4, 5, 6, 7, और 8 वषों का होता है। क्जतने वषण तक योगगनी दशा का समय जन्मपत्री के अनुसार चल रहा है उतने वषों में ननरन्तर नहीं तो अपनी समय की सुववधानुसार कुछ-कुछ अन्तराल से योगगनी दशाओं के समय काल में उनके मंत्र जप अवचय करते रहें। साधना वांनछत मंत्र जप साधना के सलए पीला आसन तथा गोघृत का दीपक जलाकर बैठें। सम्भव हो तो एक नवग्रह यंत्र अपनी पूजा में ध्यान के सलए स्थावपत कर लें। जप के बाद प्रत्येक ददन पांच देवी रूप कन्याओें को भोजन करवाकर उनकी प्रसन्नता और आशीवाणद लें। अक्न्तम अथाणत् पूर्र्णमा को नवग्रह यंत्र अपनी पूजा में स्थाई रूप से स्थावपत कर दें। तदन्तर में ननत्य एक माला उस योगगनी देवी की करते रहें क्जनकी दशा आप भोग रहे हैं।
ज मंत्र
मंिला -
ऊाँ नमों मंगले मंगल काररर्ी, मंगल मे कर ते नमुः
प ंिला -
ऊाँ नमो वपंगले वैररकाररर्ी, प्रसीद प्रसीद नमस्तुभ्यं
धान्या -
ऊाँ धान्ये मंगलकाररर्ी, मंगलम मे कुरु ते नमुः
भ्रामरी -
ऊाँ नमो भ्रामरी जगतानामधीचवरी भ्रामये नमुः
भद्रिका -
ऊाँ भदरके भरं देदह देदह, अभरं दूरी कुरु ते नमुः
उल्का -
ऊाँ उल्के ववघ्नासशनी कल्यार्ं कुरु ते नमुः
सिद्धा -
ऊाँ नमो ससद्धे ससवद्धं देदह नमस्तुभ्यं
िंकटा -
ऊाँ ह्ीं संकटे मम रोगंनाशय स्वाहा
मानसश्री गोपाल राजू