मूल लेख
मानसश्री गोपाल राजू
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सूफीमत से हर कोई पररचित है। परन्तु अचिकांश लोगों को इसके ममम, उेश्य और सबसे महत्त्िपूर्म और
िैतन्य बोि प्राप्तत आदि का सम्भ्ितः पूर्म ज्ञान न हो। सूफीमत में िेखा जाए तो इस्लाम से इतर उसमें बौद्द, इसाईमत, दहन्िुत्ि, ईरानी, जर्ुमस्ािाि के अंशों का सप्म्भमलन है। इस्लाम ने संगीत को और गाजे-बाजे आि को कभी महत्त्ि नह ं दिया परन्तु सूफी संतो ने उसको ह िैतन्य बोि का आिार बनाया। इसीसलए कट्टरिादियों की नजरों में सूफी काफफर भी बन गये।
गहरे डूबना ह उेश्य
सूफी मत में कममकाण्ड के स्र्ान पर दिल के हाल पर विशेष बल दिया गया है। उनका बस एक ह आग्रह है, जो भी करना है िह पूरे दिल से करना है। नमाज़ पढ़नी है तो िह पूरे दिल से पढ़ो। िजू करना है तो िह पूरे दिल से करो और उसमें इतना गहरा पैठ जाओ फक शर र ह नह ं बप्कक समस्त ब्रह्माण्ड अच्छे से साफ और पाक हो जाए। संगीत में जाना है तो उसमें पूर तरह से सबकुछ भूलकर बस भप्तत भाि में डूब जाओ।
भारतिषम में व्यापक प्रिार-प्रसार
सूफीमत का भारतिषम में िेखा जाए तो व्यापक
प्रिार हुआ। यहााँ कुल िार सूफी सम्भप्रिाय प्रससद्द हुए। बंगाल का सुहराििी सम्भप्रिाय, प्जसके प्रितमक हज़रत प्जयाउीन र्े। अजमेर का चिप्श्तया सम्भप्रिाय, प्जसके प्रिमतक हज़रत अिब अब्िुकला चिश्ती र्े। इसमें ननजामुीन औसलया, मसलक मौहम्भमि, अमीर खुसरू आदि विश्ि प्रससद्द संत हुए। तीसरा शेख अब्िुल क़ादिर जीलानी का कादिररया और िौर्ा र्ा नतशिंि ल प्जसके प्रिमतक ्िाज़ा बहाउीन नतशबंि र्े। िबहार के सुप्रससद्द महिूम शाह इसी सम्भप्रिाय के र्े।
सूफी बन्िनों से सिमर्ा अलग-र्लग
सूफी मतािलंबी दिखािे, तड़क-भड़क और ऐश्ियम भय जीिन से िूर सािा जीिन और उच्ि वििार पर बल िेते र्े और सबसे महत्त्िपूर्म जो उनमें िलन में रहा िह र्ा िासममक तर्ा नैनतक बंिनों से सिमर्ा मुतत रहना। नमाज़, रोजा, हज, ज़कात, प्ज़हाि आदि से तो उन सब सूफी संतो का कभी कोई लेना िेना नह ं रहा
हर िम में रूहानी मस्ती
सूफी मत में संगीत की िुन पर मस्ती से नािना
बहुत अचिक प्रिसलत है। सूफी गायकी में अनेक प्रससद्द गायकों ने सूफी गीतों को जीिन्त कर दिया। उनके बोल, उनकी िुन, संगीत और मिमस्ती भर गायकी सब ऐसा है फक सूफीमत से सिमर्ा अंजान व्यप्तत भी एक बार को सुनकर मस्ती में झूमने लगे।
सूफीआना गीतों में क़व्िाल नुमा भजन 'िमािम मस्त कलन्िर' शायि ह कोई ऐसा संगीत प्रेमी होगा प्जसने न सुना हो। इस अमर गीत के महानायक सुहारििी सम्भप्रिाय के हज़रत सखी लाल शाहबाज कलन्िर र्े। सखी संत का िास्तविक नाम हज़रत सैयि उस्मान र्ा। िह सुखमलाल रंग का िोला पहनते र्े इसीसलए िह लाल कलन्िर कहलाने लगे। यह गीत िस्तुतः ससंघ प्रान्त के दहन्िु संत श्री झूले लाल का एक भजन र्ा जो पूरे भारतीय उपमहाद्िीपों में अत्यन्त लोकवप्रय हुआ। संत झूले लाल को सम्भबोचित करके उनके सामने मााँ की फररयाि की गयी है इस कव्िाल नुमा भजन में। यह प्रससद्द गीत पंजाबी और ससंचि समचश्रत भाषा में है। अनेकों सूफी गायकों ने इस भजन को अपनी
आिाज़ िेकर मस्ती में लाखों लोगों को झुमाया है। इस अमर-गीत 'िमािम मस्त कलन्िर' का अर्म है - हर सांस (िम) में मस्ती रखने िाला फ़क़ीर (कलन्िर)
िैतन्य बोि के सलए रूहानी सूफी नृत्य
सूफी संत-फकीर अर्िा कलन्िर िैतन्य बोि के सलए एक विशेष प्रकार का नृत्य करते हैं। इनका एक नाम सूफी िरिेश नृत्य भी है। शान्त, मध्यम और संगीतपूर्म लयबद्दता में सूफी एक स्र्ान पर एप्न्ितलाक िाइज़ मस्ती में घूमते हैं। घूमने की गनत मस्ती के सार् बढ़ती जाती है और अपनी-अपनी सामर्थयम और शप्तत की अनुसार एक लट्टू की तरह घूमने लगती है। अध्यात्म-रूहाननयत में रमने के बाि एक ऐसी अिस्र्ा भी आ जाती है जब अध्यम विक्षतत सा भतत, संत ज्ञानी, सूफी, िरिेश, फकीर आदि मस्ती में झूमने लगता है, नािने लगता है अपने तन-मन की सुि खोकर। ईश प्रेम में लगभग पागल सा हो जाता है। इस अिस्र्ा में उसका मन एक िम से ननममल हो जाता है। मीरा, िैतन्य कृष्र् की रास ल ला आदि इसके प्रमार् हैं। एक अन्य मागम भी
है रूहाननयत की इस भ्रामक और प्रिसलत अिस्र्ा को पाने का प्जसमें लोग रमें हुए हैं। िरस, गांजा, भांग, शराब आदि मािक द्रव्यों में सलतत होकर अपने को 'खोना' अब यह िाला खोना कौन िाला 'खोना' है, इसमें कोई तकम -कुतकम नह ं। अपने-अपने बुवद्द और वििेक से स्ियं अच्छे-बुरे का मनन कर लें। हााँ, िास्ति में यदि रमना है तब आप भी रमें इस रूहानी िुननया के सूफी नृत्य में। परन्तु सिमप्रर्म यह अिश्य संककप ले लें फक विकृत मानससकता और तामससक खान-पान के माध्यम से कृपया इस मागम में जाने की न सोिें।
आइए िलें रूहानी िुननया में
एक शान्त सा स्र्ान िुन लें। कोई भी ढ ले-ढाले आरामिायक िस्ा अिश्य िारर् कर लें। मन पसंि सूफी संगीत की िुन-गीत बहुत ह मध्यम ध्िनन में बजा लें। एक स्र्ान पर प्स्र्र खड़े होकर अिमखुल आाँखों के सार् िाएं हार् को कंिे के बराबर ऊंिा उठा लें और आकाश के समानान्तर हर्ेल खोल लें। बाएं हार् को सामान्य प्स्र्नत में लिका रहने िें। उसकी हर्ेल खोल कर िरती के
समानान्तर फैला लें। इस मुद्रा में ह अपने स्र्ान पर खड़े हुए एन्ि तलॉकिाइज़ घूमना शुरू करें। संगीत की िुन के सार् अपने घूमने की गनत भी िीरे-िीरे बढ़ाते जाएं। फकसी शार ररक कमी के कारर् घूमना कष्िकार हो तो बलात् किावप् न घूमें। हााँ, अपने स्र्ान पर इस मुद्रा में अपनी क्षमतानुसार िीरे-िीरे घूम सकते हैं ताफक शर र पर अनतररतत भार न पड़े। गनत में तीव्रता के सार् गिमन एक ओर को सुखि प्स्र्नत में लिकती हो तो उसको लिका लें। कोई भाि, वििार मन में न आने िें। मस्त-मस्ती में संगीत की िुन पर मस्त होकर नािते रहें.... और बस नािते रहें। घूमते-घूमते िारों तरफ की िस्तुएाँ अदृष्ि होने लगेंगी। सब कुछ अनिेखा कर इस िारों तरफ उत्पन्न हो रह अदृष्िता को बढ़ाते जायें और संगीत की िुन के सार् घूमने में रमते जाए, खोते जाए, तकल न होते जाएं। जब तक र्ककर िूर न हो जाएं, शर र र्क कर ननढाल न हो जाए तब तक सब कुछ भूलकर बस केिल रमने का ध्यान रखें। चगरने को होने लगें तो हकके से शर र को िरती पर छोड़़ िें। पेि के बल िरती पर लेि जाएं। शर र में कह ं भी
तनाि न रह जाए। नाभी और िरती का स्पशम अनुभि करके भािना जगाएं फक िोनों िीेेरे-िीरे एक ह हो रहे हैं और एक ऐसी अिस्र्ा आ गयी है फक एक ह हो गए हैं। यह एक होना ह दिव्यता से समलन की सीढ़ है जो अ्यास के सार्-सार् आपको एक रूहानी िुननयााँ में ले जाएगी।
मानसश्री गोपाल राजू