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शनि

गोपाल राजू की पुस्तक 'स्वयं चुनिये अपिा भाग्यशाली रत्ि' का सार-संक्षेप
मािसश्री गोपाल राजू
(पू. वैज्ञानिक)
ससववल लाइंस
रूड़की – २४७ ६६७
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सूयय पुत्र शनि ग्रह की तथाकथथत् ढइया और साढे साती दोष दुष्प्रभाव ज्योनतष शास्त्र में तीि स्स्थनतयों से निर्ायररत ककया जाता है। व्यस्तत की जन्म कुण्डली में लग्ि से तथा चन्र और सूयय की ववसभन्ि भावगत स्स्थनतयों से । भचक्र में शनिग्रह का बारह रासशयों में गोचर वश भ्रमण लगभग तीस वषों में पूणय होता है। व्यस्तत के जन्म वववरण उपलब्र् ि होिे की स्स्थनत में रायः उसके चसलत िाप की रासश से यह दोष देखे जाते हैं।
लग्ि, चन्र, सूयय अथवा िाम रासशयों से शनि जब चौथी और आठवीं रासशयों में रवेश करता है तब यह स्स्थनत शनि की ढइया तथा बारहवीं, पहली और दूसरी रासशयों पर का भ्रमण काल शनि की साढे साती कहलाता है। शनि ग्रह की यह स्स्थनतयााँ तीि रकार से अथायत् तीि चरणों में अपिा दुष्प्रभाव ददखलाती हैं। पहले चरण में व्यस्तत का मािससक संतुलि बबगड़ता है। वह सामान्य व्यवहार से इर्र-उर्र भटकिे लगता है। उसके रत्येक कायय में अस्स्थरता आिे लगती है। व्यथय के कष्प्ट और अकारण उपजी उलझिे उसके दुःखों का कारण बििे लगती है। दूसरे चरण में व्यस्तत को मािससक और शारररीक रोग घेरिे लगते हैं। तीसरे चरण तक दुःख और कष्प्ट झेलते-झेलते वह जीवि से त्रस्त हो जाता है। तीिों, दैदहक, भौनतक और आध्यास्त्मक कष्प्टों के कारण जीवि िैराश्य, मािससक संत्रास, ग्रह तलेष, अस्स्थरता, रोग-शोक आदद के समले-जुले कष्प्टों में व्यतीत होिे लगता है।
शनि ग्रह के फसलत में दुष्प्रभाव देिे के सामान्यतः मािे गए मूल कारण शनि की ढइया और शनि की साढे
साती, देखा जाए तो तीस वषय में व्यस्तत दो बार अथायत् पांच वषय शनि की ढइया और एक बार अथायत् साढे सात वषय शनि की साढे साती अथायत् कुल साढे बारह वषय का कोप भाजि बििा पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जीवि के आर्े से अथर्क समय व्यस्तत तीि बार साढे साती और छः बार ढइया अथायत् पूरे साढे सैतींस वषय तो शनि के इस तथाकथथत दोष को भोगिे में ही व्यतीत कर देता है। अत्यन्त सामान्य सी भाषा में इस शनिग्रह के कष्प्ट देिे के सलए कह ददया जाता है कक शनि तो बस एक न्यायार्ीश है, वह स्वयं कुछ िहीं करता। वह तो व्यस्तत के जन्म-जन्मान्तरों के दुष्प्कमों के भोग का बस उथचत न्याय मात्र करता है। जो सजा व्यस्तत के सलए निर्ायररत होती है, कष्प्टों के रूप में इि वषों में तद्िुसार वह व्यस्तत को काटिी ही पड़ती हैं।
यह तो हुई मात्र एक चन्र लग्ि से गणिा की गयी शनि दोष की बात। यदद सूयय और लग्ि की अथवा िाम की रासशयों से भी दोष की गणिा की जाए तब तो व्यस्तत का एक जीवि तया दो-चार जीवि भी कम पड़ जाएंगे
सजा भोगिे के सलए।
बौविकता से देखा जाए तो शनिग्रह के इस महादोष की मान्यता निरथयक और हास्यरद लगेगी। ऐसा भी िहीं है कक शनि के यह दोष कल्पिा मात्र ही हैं। दोष हैं अवश्य परन्तु अज्ञािता में शनि का भूत और शनि का हौवा अथर्क बिा ददये गये हैं। ककसी व्यस्तत को कहीं भी, कभी भी कोई कष्प्ट हुआ, कोई आथथयक संकट आया, ककसी असाध्य रोग िे घेरा तो बस अज्ञािता में यह बलात् मि में बैठा ददया जाता है कक शनि का कोप है, शनि के सलए दाि-पुण्य करो।
ज्योनतष शास्त्र में ककसी एक ग्रह को लेकर ककया गया निणयय सवयथा अिुथचत है और केवल अज्ञािता और भय उत्पन्ि करिे वाली ज्योनतष का ही अकारण निसमत्त है। ववसभन्ि भावगत ग्रह स्स्थनत, बलाबल, दशा, अन्तदयशा, षोडश वगय, अष्प्टक वगय आदद द्वारा समस्त ग्रहों का अवलोकि ककए बबिा शनि के इस महादोष की गणि करिा सवयथा अिुथचत है। शुभ और अशुभ का जीवि में निणयय ग्रह-िक्षत्रों तथा ग्रहगोचर के संयुतत
ज्ञाि और ववशुि गणिाओं के आर्ार पर ही ककया जािा चादहए। इससलए पहले भय का भूत तो मि से बबल्कुल ही हटा दें।
तथावप् यदद वास्तव में कोई व्यस्तत शनि की पीड़ा का कारण बि रहा है तो उिके सलए सरल से अिेकों ववकल्प हैं।
रत्िों का ववकल्प अपिे दीघय कालीि अध्ययि-मिि में मैंिे रभावशाली पाया है। अपिी फाइलों से छााँटकर एक बहुत ही पुरािा वववरण दे रहा हूाँ ।अपिी पुस्तक के इस उदाहरण को चुििे का ववशेष कारण यह है कक उपयुतत रत्ि यदद ककसी दोष का गणिा कर सलया जाये तो बहुत ही सन्तोष जिक पररणाम समल सकते हैं।
बरेली में 8 िवम्बर 1945 को ददि में 12 बजकर 55 समिट पर जन्मे एक सज्जि की कुण्डली में मकर रासश की लग्ि में सप्तम भाव में शनि एवं मंगल, िवम भाव में गुरू, दशम भाव की तुला रासश में सूयय और शुक्र, एकादश भाव की वृस्श्चक रासश में बुर् और चन्रमा तथा छठे और बारहवें भाव में क्रमशः राहु और केतु स्स्थत थे।
दुभायग्य की दृस्ष्प्ट से देखा जाए तो यह पत्री अपिे में सबसे निकृष्प्ट पत्री देखी है मैंिे अपिे जीवि में। इिके ववषय में रचसलत था कक चाहे खेल का मैदाि हो या कोई राग-रंग का काययक्रम, सबमें इिका िाम चथचयत रहता था। गायि, थचत्रकारी, लेखि, भ्रमण, अध्ययि, मिि आदद अिेकों ववद्याओं में इिकी अच्छी जािकारी थी। परन्तु ग्रहों के दुष्प्रभाव के कारण जीवि के ककसी भी पहलू को वह पूणयतः िहीं छू सके। जीवि के अभावों में अध्ययि कायों में भी इिके अिेकों व्यवर्ाि आते रहे। शनि का तुला रासश में रवेश उिके जीवि में स्स्थरता तथा गंभीरता लािे लगा। जीवि को सफल बिािे का उन्होंिे एक लक्ष्य बिा सलया गुह्य ववद्याओं में शोर्परक कायय करिे का । यहााँ से र्ि, िाम, तथा जीवि की सुख सुववर्ाएं उिको समलिे लगीं।
पंचर्ा मैत्री से देखें तो शनि के समत्र हैं शुक्र, राहु और गुरू। तुला रासश में शनि बलवाि होता है। साढे साती रारम्भ होिे से कुछ ददि पूवय ही मैंिे उिको एक िीलम रत्ि र्ारण करवाया था। पुखराज वह पूवय में पहिे ही हुए
थे। साढे साती रारम्भ होते ही कुछ ददि उिके जीवि में कलह, तलेष, तथा तरह-तरह से कष्प्ट और आथथयक कदठिाइयााँ रारम्भ हो गयी। अपिे रत्ि चयि को लेकर मैं पूणयतः आश्वस्त था। एक बार पुिः मैंिे उिकी जन्मपत्री का अवलोकि ककया। शनि के गोचर स्थाि से आठवीं रासश गुरू की पड़ती है। गुरू का रत्ि पुखराज यहााँ अररष्प्टकारी बि रहा था, उसको तुरन्त उतारिे का मैंिे उिको परामशय ददया। पुखराज का उतरिा था कक चमत्कारी रूप से शनि के दुष्प्रभावी साढे साती का भी सुरभाव उिके जीवि में रारम्भ हो गया। शनि के वृस्श्चक रासश को पार करते ही अथायत् 16 ददसम्बर 1987 से उिके जीवि में दुभायग्य का पुिः पदायपण हो गया। जो सज्जि हवाई यात्रा और अच्छे से अच्छे होटलों में अपिा समय बबताते थे उिके पास एक पुरािी कार भी िहीं बची। उिकी मिःस्स्थनत का अिुमाि सहज ही लगाया जा सकता है। जन्म पत्री का अवलोकि करिे पर स्पष्प्ट हुआ कक र्िु रासश (जहां गोचरवश शनि स्स्थत था) से शनि अष्प्टम भाव में स्स्थत था। यह शनि की साढे साती का
पूणय रूप से अपिा दुष्प्रभाव ददखलाकर उिके जीवि को उथल-पुथल कर रहा था। मैंिे उिको िीलम उतरवाकर पुिः पुखराज र्ारण करवा ददया। एक माह के अन्दर-अन्दर ही उिका जीवि पुिः स्स्थर होिे लगा।
कहिे का तात्पयय यह है कक शनि की साढे साती का यदद उथचत निदाि समल जायें तो ग्रह का ववपरीत रभाव भी शुभरद ससि होिे लगता है।
साढे साती में रत्ि र्ारण करवाते समय आप भी ध्याि रखें कक रत्ि से सम्बस्न्र्त उस ग्रह का ककसी भी रकार से सम्बन्र् उसके गोचर भाव से छठे एवं आठवें भाव से िा हो।
दूसरे, शनि का तथाकथथत् यह दाष यदद वास्तव में पीड़ा का कारण बि रहा है तब तया वह मात्र शनिवार को ही दाि करिे से ही दूर हो जाएगा? बौविकता से मिि करें। यदद कष्प्ट है तब वह तो हर ददि पीड़ा कारक ससि होगा। इस सलए उपाय करिा है तो रनतददि तयों ि ककया जाए।
एक र्ातु का पात्र ले लें। उसमें लोहे का एक काल
पुरूष, जैसा कक शनि दाि लेिे वालों के पास होता है, स्थावपत कर लें। इसको घर के मुख्य द्वार से बाहर कहीं सुरक्षक्षत रख लें। रातः उठकर जो भी पूजा र्मय, ध्याि करते हैं, कर लें। एक चम्मच में सरसों का तेल भरकर उसमें अपिा चेहरा देखिे का रयास करें। मि में श्रिा से यह भाव जगाएं कक हमारे शनि दोष द्वारा जनित समस्त कष्प्ट र्ीरे-र्ीरे न्यूि होकर समाप्त हो रहे हैं। ऐसी भाविा के साथ तेल पात्र में छोड़ दें।
यह कमय यथासम्भव रत्येक ददि करते रहें। जब लगे कक पात्र तेल से भरिे लगा है तब उसके तेल को शनि दाि लेिे वाले को दाि कर दें। पात्र पुिः रयोग करिे के सलए यथा स्थाि स्थावपत कर दें। सुववर्ा की दृस्ष्प्ट से तेल की एक शीशी पात्र के पास कहीं रख सकते हैं। मात्र एक इस सरल से उपाय द्वारा शनि ग्रह जनित कष्प्टों से आपको मुस्तत समलिे लगेगी।
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