शाम्भवी मुद्रा

मुद्राओं में एक शाम्भवी मुद्रा का वर्णन भगवद्गीता, पातंजल योग सूत्र, अमनस्क योग, घेरण्ड संहिता, शशवसंहिता, गोरक्षा संहिता, िठयोग प्रदीपपका, योग च ंतामणर् तथा अशभनव गुप्ता ायण और योग के अनेक शास्वत ग्रंथों में आता िै। शाम्भवी मुद्रा को आहदशक्तत उमा स्वरुपपर्ी, शशवपप्रया, शंभूपप्रया आहद मुद्रा भी किते िैं। स्वयं बोध अमनस्क योग में स्पष्ट शलखा िै कक यि पवद्या अत्यन्त गुप्ताहदगुप्त िै और ककसी पवरले पुण्यआत्मा को िी शसद्ध िोती िै।
लाहिडी मिाशय और मिावतार बाबा के किया योग में जो च त्र िम देखते िैं वि शाम्भवी मुद्रा में िी िैं। शाम्भवी शसद्ध मुद्रा वाले ककसी संत, मिात्मा के साननध्य और यिााँ तक की उनके दशणन मात्र से िी मुक्तत पद की प्राक्प्त िोती िै।
भूत, भपवष्य की बातों का ज्ञाता बनना तो ऐसे मिात्माओं के शलए बिुत िी साधारर् सी बातें िोती िैं।
मैडडकल ररस ण के योग और अध्यात्मवादी क्जज्ञासु वैज्ञाननकों ने एक मत से यि ननष्कर्ण ननकाला िै कक एकाग्रता, भावनात्मक सन्तुलन, शरीर में ऊजाण का स्तर, मानशसक शांनत और आध्याक्त्मक उपलक्धधयों के साथ-साथ एलजी, दमा, अस्थमा, हदल के रोग, मधुमेि, अननद्रा रोग, अवसाद आहद अनेकों शारीररक रोगों में इस मुद्रा के सतत् अभ्यास से मत्काररक रूप से लाभ देखने को शमला िै।
शाम्भवी मुद्रा साधकों के ई. ई.जी से प्राप्त ननष्कर्ो में यि तथ्य सामने आया कक मक्स्तष्क में बायें और दायें गोलाधण के मध्य मत्काररक रूप से संतुलन बन जाता िै और यि बुद्चध को प्रखर बनाता िै।
यहद पवद्याथी वगण को अथवा ऐसे व्यक्ततयों को, क्जनका कायण शशक्षा अथवा अन्य बौद्चधक स्तर का िै, इस मुद्रा का अभ्यास करवा कर शसद्धिस्त ककया जाए तो उनसे शमलने वाले पररर्ाम और भी अचधक संतोर्जनक िोंगे।
कैसे शसद्ध करें शाम्भवी मुद्रा
किीं शांतच त समतल स्थान पर ककसी सरल, सुगम
एवं सुखद आसन में बैठ जाएं। रीढ़ की िड्डी बबल्कुल सीधी रखें, बैठने वाले समतल स्थान के सापेक्ष ठीक 90 डडग्री पर अपना समस्त ध्यान दोनों भौवों के मध्य क्स्थत आज्ञा ि पर हटका लें। करना कुछ निीं िै न कोई मंत्र, न कोई कमणकाण्ड और न िी कोई जप-तप आहद। बस ध्यान को इस एक स्थान पर हटकाए रखने का अभ्यास करना िै। ऐसा प्रयास करते जाना िै कक अधणखुली अथवा पूर्णतया खुली आाँखों से भी बािर की ककसी वस्तु पर ध्यान न जाए बबल्कुल पव ार शून्य बन जाना िै। बाह्य कोई वस्तु हदखलाई न दे, ध्यान में इतना रम जाना िै। और इस किया को त्राटक से सवणथा शभन्न समझना िै। अमनस्क योग में शलखा िै कक यि शाम्भवी मुद्रा अन्तलणक्षवाली, बहिर्दणक्ष्टवाली और ननमेर्-उन्मेर् से शून्य िै। अथाणत् इस मुद्रा में बहिर्दणक्ष्ट िोने पर भी अन्तलणक्ष िोता िै और र्दक्ष्ट में ननमेर् और उन्मेर् निीं िोते।
अभ्यास के मध्य प्रारक्म्भक अवस्था में आाँखों में णख ाव आता िै, उनमें पीड़ा भी िो सकती िै परन्तु धीरे-धीरे एक ऐसी अवस्था आने लगती िै कक बन्द, खुली अथवा अधणखुली आाँखों से भी आाँखों पर िी निीं बक्ल्क भौनतक शरीर के ककसी अंग पर ध्यान जाना िी बन्द िो जाता िै। बािरी
पवर्यों को देखना, उनका ध्यान करना जब पूर्णतया समाप्त िो जाता िै तब अन्तकरर् की वृपि और पवर्य से अलग मन, प्रार् और सुखद नींद की अवस्था में साधक पिुाँ जाता िैं। साधारर् नींद और शम्भवी साधक की ननद्रा अवस्था में धरती और आकाश का अन्तर िै। एक में मन अ ेत अवस्था में पिुाँ जाता िैं और एक में मन ैतन्य रिता िै। बस वि सांसाररक समस्त पवर्य वस्तु से और पवर्यों में आसतत मन से मुतत रिता िै। यिी परम हदव्य शाम्भव तत्व िै और यिी अन्ततः परमात्मा की प्राक्प्त का एक प्रशस्त मागण िै। शाम्भवी मुद्रा शसद्ध िस्त साधक साक्षात् बह्म स्वरूप िो जाता िै।
गोपाल राजू
शसपवल लाइंस
रूड़की – २४७ ६६७
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