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मोक्ष

मानसश्री गोपाल राजू
पूर्व र्ैज्ञाननक
30 ससवर्ल लाइन्स
रुड़की - 247 667(उत्तराखण्ड)
www.bestastrologer4u.com
जीर्न, मरण, लोक, परलोक, स्र्गव और नरक आदि गूढ़ वर्षय यदि सद्सादित्य में तलाशें तो इनके सलए कोई समान सार्वत्रिक ननयम नि ीं िै। परन्तु प्रत्येक जीर् की स्र्-स्र् कमावनुसार वर्सिन्न गनत िोती िै, यि कमववर्पाक का सर्वतींि
ससद्र्ाींत िै। सार यि ननकलता िै जीर् कक कमावनुसार स्र्गव और नरक आदि लोकों को िोगकर पुनरवप मृत्युलोक में जन्म धारण करे और िूसरे जजसमें प्राणी जीर्त्र् िार् से छूटकर जन्म मरण के प्रपींच से सिा के सलए उन्मुक्त िो जाए।
र्ेिादि शास्िों में उक्त िोनों गनतयों को कई नामों से जाना गया िै। श्रीमद् िगर्द् गीता के अनुसार िेर्, मनुष्य आदि प्राणणयों की मृत्यु के अनन्तर िो गनतयााँ िोती िै-
इस जींगम जगत के प्राणणयों की अजनन, ज्योनत, दिन, शुक्ल पक्ष और उत्तरायण से उपलक्षक्षत अपुनरार्ृजत्त-फलक प्रथम गनत तथा धूम, रात्रि, कृष्णपक्ष और िक्षक्षणायन से उपलक्षक्षत पुनरार्ृजत्त-फलक िूसर गनत अनादि काल से चल आ रि िै। इसमें िूसरे मागव से प्रयाण करने र्ाला प्राणी कमावनुसार पुनः पुनः जन्म मरण के र्क्र चक्र में पड़कर आ-ब्रह्मलोक पररभ्रमण करता रिता िै परन्तु प्रथम मागव से प्रयाण करने र्ाला जीर् सूयवमण्डल िेिन करके सर्विा के सलए जन्म और मरण के बन्धन से छूट जाता िै अथावत् मोक्ष को प्राप्त िो जाता िै। मोक्ष के अथव के सलए साधारण सी िाषा में प्रायः कि दिया जाता िै कक छुट्टी समल गयी, मुजक्त िो गयी, पीछा छुटा, झींझटो से िूर िुए, ब्रह्म में ल न िो गये, साींसाररक
बींधनों से छुटकारा समल गया, जन्म-जन्मान्तर के चक्कर से मुजक्त समल गयी आदि। िाशवननक वर्चारकों में मोक्ष के वर्षय में मतिेि िै चार्ावक के अनुसार िेिनाश अथावत् शर र का अन्त ि मोक्ष िै। शून्यर्ाि बौद्ध आत्मा के उच्छेि को मोक्ष मानते िैं। अन्य बौद्ध ननमवल ज्ञान की उत्पजत्त को मोक्ष किते िैं। जैन िशवन के अनुसार कमव से उत्पन्न आर्रण के नाश से जीर् का ननरन्तर ऊपर उठना ि मोक्ष िै। र्ैसशवषक का मत िै कक आत्मा के समस्त वर्शेष गुणों का अिार् िोना ि मोक्ष िै। नैयावयक किते िैं कक 21 प्रकार के िुःखों (6 ज्ञानेजन्िय, उनसे उत्पन्न 6 ज्ञान, उनमें 6 वर्षय, सुख-िुख और शर र) की आत्यजन्तक ननर्ृजत्त मोक्ष िै। मीमासींको के अनुसार वर्दित र्ैदिक कमव के द्र्ारा स्र्गव को प्राप्त करना ि मोक्ष िै। साींख्य िशवन का मत िै कक प्रकृनत जब पूणवतया उपरत िो जाए तब पुरूष का अपने स्र्रूप में जस्थत िोना मोक्ष िै योग िशवनकार के अनुसार चचत्शजक्त का ननरूपाचधक रूप से अपने आप में जस्थत िोना मोक्ष िै रामानुज सम्प्प्रिाय में ईश्र्र के गुणों की प्राजप्त के साथ ईश्र्र के स्र्रूप का अनुिर् िोना मोक्ष िै। मािर्मत में िुःख से समले पूणव सुख की प्राजप्त ि मोक्ष िैं।
मोक्ष अर्स्था में जीर् को ईश्र्र के तीन गुण (सृजष्ट कतवव्य, लक्ष्मीपनतत्र् और श्रीर्त्स की प्राजप्त) को छोड़कर सब कुछ प्राप्त िोता िै। पाशुमत िशवन में परमेंश्र्र (पनत) बन जाना, शैर्, िशवन में सशर् िो जाना और प्रत्यसमज्ञा िशवन में पूणव आत्मा की प्राजप्त को मोक्ष किा गया िै। रसेश्र्र िशवन में रस के सेर्न से िेि का जस्थर िो जाना और जीते जी मुक्त िोना मोक्ष िै। र्ैयाकरणों का किना िै कक मूलाधार चक्र में जस्थत परा नामक ब्रह्मरूपणी र्ाक् का िशवन कर लेना ि मोक्ष िै। अद्र्ैत र्ेिान्तों में मूल िशवन कर लेना ि मोक्ष िै। अद्र्ैत र्ेिान्त में मूल ज्ञान के नष्ट िो जाने पर अपने स्र्रूप की अनुिूनत अथावत् आत्म साक्षात्कार ि मोक्ष िै।
''सर्वसार िशवन सार'' में जाएीं तो वर्द्र्च्चश्णानुरागी स्र्ामी शाजन्तधमावनन्ि सरस्र्ती के वर्चारों का सर्व-सार सत इस प्रकार बिुत ि सरल रूप में समलता िै जो मोक्ष गूढ़ वर्षयक सत्य को स्पष्ट कर िेता िै।
शास्िकारों ने मोक्ष प्राप्त करने के िस साधन बताए िैं-
1 मौन अथावत् इजन्ियजजत िोकर र्ाणी का सींयम कर ले। र्ाणी का प्रयोग किी साींसाररक कायों में ना करें।
2 ब्रह्मचयव व्रत अथावत् ब्रह्मचयव का वर्चधर्त् पालन करें। श्रुनत
किती िै कक केर्ल ब्रह्मचयव व्रत से ि जीर् की मुजक्त िो जाती िै।
3 शास्ि श्रर्ण ननरन्तर करते रिें और श्रर्ण के पश्चात् उसका सतत् मनन और ननदिध्यासन चलता रिे तो िी मुजक्त का मागव प्रशस्त िोता िै।
4 तप अथावत् तपस्या से अिीं समटता िै, तपस्या की उत्तरोत्तर र्ृवद्ध से ब्राह्मी जस्थनत को जीर् प्राप्त िोता िै अथावत् बह्म में ल न िो जाता िै।
5 अध्ययन अथावत् बुवद्ध का व्यायाम । ननरन्तर शास्ि अध्ययन और तद्नुसार उसका चचन्तन-मनन जीर् को ब्रह्मार्गासमनी बनाता िै । िगर्द् गीता के अनुसार िी बुवद्ध के समीप ि तो ब्रह्म िै ।
6 स्र्धमव पालन अथावत् जजस र्णव के िों, जजस मत के िों, जजस आश्रम आदि के िों, धमव का पालन करते रिें - यि िी मोक्ष का मागव िै।
7 शास्िों की व्याख्या अथावत् शास़्त्िों की प्रबल युजक्तयों द्र्ारा युजक्तयुक्त व्याख्या करें। यि िी मुजक्त का मागव प्रशस्त करती िै। व्याख्या करते समय बुवद्ध अत्यन्त सूक्ष्म िो जाती िै और ब्रह्म तो सूक्ष्मानत सूक्ष्म िै । स्थूल बुवद्ध र्ाले तो स्थूल
शर र ि पा सकते िै।
8 एकान्तर्ास अथावत् सींसार कोलािल और चकाचौंध से िूर । एकान्तर्ास का अथव अपने िानयत्र्ों से िागकर पर्वत, जींगल, आश्रम आदि में िाग जाना किावप नि ीं िै। 9 जप अथावत् ननरन्तर नाम मींि जप र्ाला िी मोक्ष को प्राप्त िोता िै। मींि जाप की मदिमा का इससे बड़ा कोई उिािरण िो ि नि ीं सकता, जो सशर् जी ने पार्वती जी से '' िे र्रानने पार्वती मैं तीन बार प्रनतज्ञा करके किता िूाँ कक केर्ल जप माि से ि इष्ट कायव की ससवद्ध िो जाती िै।''
अब यि बात ननिवर करती िै अपने-अपने बुवद्ध और वर्र्ेक पर कक व्यजक्त को िौनतक सुखों की चाि िै या इससे वर्मुख िोकर पारलौककक सुखों की।
10 समाचध िी मुजक्त का एक ननसमत्त बताया िै। शास्िकारो ने आसन, प्राणायाम, प्रत्यािार, धारणा, ध्यान और अन्ततः समाचध इन छः को योग शास्िों में षड़ींग योग किते िैं। इनमें प्रथम तीन तो बाह्य साधना और अजन्तम तीन-धारणा, ध्यान और समाचध आन्तररक साधन किलाते िैं। समाचध से मन एकाग्र िोता िै परन्तु साथ में मन ननमवल िोना परम आर्श्यक िै, नि तो पुनः जीर् िौनतक र्ाि में पिुाँच जाएगा।
जब शर र में मल न रिकर ननमवल बन जाए, मन में वर्क्षेप न िोकर त्रबना वर्क्षेप के बन जाए और बुवद्ध का आर्रण िटकर ननरार्रण बन जाए तो समाचध से मोक्ष की अर्स्था प्राप्त िो जाती िै।
मानसश्री गोपाल राजू
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