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मंत्र सिद्धि

मानसश्री गोपाल राजू
रूड़की - 247 667 (उत्तराखण्ड)
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मंत्र ससद्धि अपने में एक जटिल एवं क्ललष्ि प्रककया हैं। इसके सलए ज्ञान और ज्ञान प्राप्त करने के सलए संयम, इच्छाशक्लत तथा लगन परम आवश्यक है। ककसी भी मंत्र किया में यटि जा रहे है तो उसके सलए कुछ कारकों का ज्ञान परम आवश्यक है। पाठकों के लाभाथथ कुछ वह कारक टिये जा रहे हैं जो मंत्र शक्लत के पीछे मंत्र को चैतन्य करने का प्रमुख कायथ करते हैं।
1. ऋद्धि
सशव के मुख से उच्चाररत सवथप्रथम क्जस महापुरूि ने उसको मंत्र स्वरूप ससि ककया था, वह उस मंत्र के ऋद्धि हैं। उनको आटि गुरू मानकर सवथप्रथम साधक मस्तक में उनका न्यास करते हैं।
2. िेवता
आत्मा के समस्त किया कलापों को प्रेररत, संचासलत तथा ननयंत्रत्रत करने वाली प्राणशक्लत को िेवता कहते हैं। जप से पूवथ हृिय में िेवता का न्यास ककया जाता हैं।
3. छन्ि
अक्षर अथवा पिों से छन्ि बनता है। इसका उच्चारण मुुँह से होता है अतः छन्ि का न्यास साधक मुख से करते हैं ।
4. बीज
जो तत्त्व मंत्रशक्लत को उद्भाद्धवत करता है वह बीज कहलाता है । अतः सृजनांग
अथाथत गुप्तांग में बीज का न्यास ककया जाता है ।
5. शक्लत
क्जस तत्त्व की सहायता से मंत्र बीज बनता है वह शक्लत कहलाता है। मंत्र की उस शक्लत को साधक पािस्थान में न्यास करते हैं।
6. द्धवननयोग
ककसी मंत्र को उसके फल की टिशा ननिेश िेना द्धवननयोग कहलाता है। द्धवननयोग में एक कीलक नामक अन्य तत्त्व भी माना गया है क्जसका समस्त अंगों में न्यास ककया जाता है। द्धवननयोग मंत्र शक्लत को सन्तुसलत रखने के सलए आवश्यक है अन्यथा मंत्र का प्रभाव पूणथ नहीं होता।
7. न्यास
मंत्रमहोिधध में द्धवसभन्न प्रकार के न्यासों का द्धवस्तृत वणथन समलता है। न्यास के त्रबना मंत्र जप ननष्फल ही रहता है।
8. अंगन्यास
मंत्र-तंत्र के अनेक मूल ग्रंथों में सलखा है कक न्यास के त्रबना मंत्र अधूरा है वह पूणथरूप से फल नहीं िेता। अज्ञानता अथवा आलस्यवश जो साधक न्यास पूणथ नहीं करते उन्हें अनेक द्धवघ्नों का सामना करना पड़ता है । इसी िम में हृिय, ससर, सशखा, कवच, नेत्र तथा करतल इन छः अंगों में मंत्र का न्यास करना अंगन्यास कहलाता है।
9. पंचाग एवं िडंगन्यास
जहाुँ पंचांग न्यास आता है। उसका अथथ है कक नेत्रों को छोड़कर अन्य पाुँच में साधक को न्यास करना चाटहए।
यटि मंत्र िीक्षा एवं पुरश्चरण द्धवधधवत् नहीं ककया गया है तो मंत्र की ससद्धि नहीं होती । ऐसे में पुनः पुरश्चरण करना चाटहए। यटि तीन बार पुरश्चरण करने के बाि भी मंत्र ससि नहीं होता है उसके सलए शास्त्रों में ननम्न सात उपाय बताए गए हैं। इसके बाि ससद्धि समलने में संशय नहीं रहता। सात में से भी कौन सा उपाय अपने सलए चुनें, यह भी योग्य गुरू द्वारा ही जाना जा सकता है अन्यथा कुछ करना व्यथथ होगा।
1. भ्रामण
सशलारस, कपूर, कुंकुम, खस तथा सफेि चन्िन के तेल को समलाकर एक वायु बीज 'यं' तथा एक मंत्र के अक्षर को सलखें। इस प्रकार 'यं' बीज से सम्पुटित कर मंत्र का
एक-एक अक्षर भोजपत्र पर अपने मंत्र को यंत्राकार से सलखें। इस सलखखत मंत्र को िूध, घी, मधु तथा जल छोड़कर द्धवधधवत् पूजन, जप तथा हवन करें। इस प्रकार पुरश्चरण करने से मंत्र की ससद्धि अवश्य ही समलती है।
2. रोधन
'ऐ' से सम्पुटित मूल मंत्र का जप रोधन कहलाता है। ससद्धि में इसका भी महत्त्वपूणथ योगिान है।
3. वशीकरण
अपने मंत्र को रलतचन्िन, कूि, धतूरे के बीज तथा मैंनससल से सलखकर गले में धारण करके कफर जप करना वशीकरण कहलाता है ।
4. पीड़न
अधरोत्तर योग से जप करके अधरोत्तर स्वरूपणी िेवता की पूजा करके अकवन के िूध से द्धवल्वपत्र पर मंत्र सलखकर उसे पाुँव के नीचे िबाकर हवन करने को पीड़न कहते हैं।
5. पोिण
स्त्री बीज से सम्पुटित कर मंत्र का एक हजार जप करना तथा मंत्र को गाय के िूध से भोजपत्र पर सलखकर हाथ में धारण करना पोिण कहलाता है।
6. शोिण
'यं' बीज से सम्पुटित मूल मंत्र का एक हजार जप तथा यज्ञ भस्म से मूल मंत्र को भोजपत्र पर सलखकर गले में धारण करना शोिण कहलाता है।
7. िाहन
मंत्र के प्रत्येक स्वर वणथ के साथ 'रं' लगाकर जप करना तथा पलाश के तेल से भोजपत्र पर सलखकर गले में धारण करना िाहन कहलाता है।
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