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सोलह सिंगार

भानसश्री गोऩार याजू  30, ससविर राइन्स रूड़की - 247 667 (उत्तयाखण्ड) Mob. 9760111555 www.bestastrologer4u.com 
 
  
 
 कहा  गमा है कक गुणिती स्त्री को आबूषण अथिा श्ररॊगाय की आिश्मकता ही नहीॊ है। सुन्दय गुण ही उसका आबूषण है। कफीय जी ने ऐसी स्त्री की स्त्तुतत इस प्रकाय से की है- ऩततव्रता भैरी बरी, गरे काॊच की ऩोत। सफ सखखमन भें मों ददखे, ज्मों यविससस की जोत।।     ऩविर, सुशीर औय सदाचारयणी नायी तो प्रबु की 

 
 असीभ करऩा से ही उऩरब्ध होती है। आचामों ने स्त्री के तनम्न गहनें फताए हैं- शीरॊ रज्जा च भाधुमे दृढ़ता ह्माजजिस्त्तथा, ऩविरता च सन्तोषॊ सुरृत्तॊ विनम् ऺभा। शुचचता गुरु शुश्रूष बूषणा् द्िादशस्त्भरता्।।     अथाजत स्त्री के कुर 12 आबूषण मह हैं-      1 शीर 2 रज्जा 3 भधुयिाणी 4 दृढ़ता 5 सयर स्त्िबाि 6 ऩततव्रता 7 सन्तोष 8 सुरृदम 9 विनम 10 ऺभा 11 रृदम की शुद्धता तथा 12 फड़ों की सेिा। नायी के श्ररॊगाय को रेकय काभ की दृष्टि से यससक िगज ने जो फायह आबूषण कहे हैं, िह तनम्न हैं -     1 नूऩूय 2 ककॊकन 3 हाय 4 नथ 5 चूड़ी 6 भुॊदयी 7 शीश पूर 8 बफन्दी, 9 कण्ठश्री 10 फेसय 11 िीका तथा 12 फाजूफन्द।     आज आबूषण के नाभ ऩय पैशन शब्द का चरन है ष्जसका अथ जरगामा जाता है- शीर औय रज्जा का त्माग । उऩयोक्त आबूषणों को अचधकाॊशत् ततराॊजतत दी जा यही है। आबूषण के नाभ ऩय बड़काऊ तथा उत्तेजक 

 
 भेकऩ तथा अॊगूठी, हाय ब्रेसरेि, िस्त्र आदद को भार एक स्त्िेिस ससम्फर के रूऩ भें देखा जाता है। ऩयन्तु एक सभम था जफ विद्िान रेखक स्त्री के सोरह श्ररॊगाय को ऻानिती , विदुशी, धभ जऩयामण, साध्िी तथा ऩततव्रता स्त्री को आबूषण भानते थे। सम्बित् आज की नायी को ऩता ही न हो कक िास्त्ति भें 16 श्ररॊगाय औय उनका साय-सत क्मा है। मदद ऻान ना हो तो जातनए 16 श्ररॊगाय की सॊक्षऺप्त व्माख्मा- 1 सभस्त्सी - सभस (फहाना फनाना) छोड़ दें। 2 ऩान मा भेंहदी - अऩनी रारी फनाए यखने की सदैि चेटिा कयें। 3 काजर - शीर का जर आॉखों भें यखें। 4 फेंदी - फदी (शयायत) को त्मागने का मत्न कयें। 5 नथ - भन को नाथें, फुयाई से फचें। 6 िीका - मश का िीका रगाएॊ, करॊक न रगने दें। 7 फॊदगी - ऩतत औय गुरूजनों की िन्दना कयें । 8 ऩत्ती - अऩनी राज यखें। 9 कणजपूर - दूसयों की प्रशॊसा सुनकय ऩुरककत हों। 

 
 10 हॊसरी - ऩतत से हॊसभुख फनें। 11 भोहन भारा - ऩतत के भन को भोह रें। 12 हाय - ऩतत से हाय (ऩयाजम)स्त्िीकायें। 13 कड़ े- कड़ े(कठोय)फनकय फात न कयें। 14 फाॊक - फाॊक (ततयछी) फनकय न चरें। 15 ऩामर - फड़ों के ऩैय रगे। 16 छल्रा - छर का त्माग कयें। 
 
    बायतीम सभ्मता भें श्ररॊगाय से ही सौन्दमज की असबिरवद्ध होती है- मही सत्म अनादद कार से चरन भें है। काभशास्त्रों ने ष्स्त्रमों के सरए तनम्न सोरह प्रकाय के श्ररॊगाय का िणजन ककमा है- 1 उफिन  2 स्त्िच्छ िस्त्र  3 रराि ऩय बफन्दी 4 आॉखों भें काजर  5 कान भें कुण्डर  6 नाक भें भोती की नथ 

 
 7 गरे भें हाय  8 फारों भें चोिी  9 पूरों के गहने  10 भाॉग भें ससन्दूय  11 शयीय भें केसय तथा चन्दन का अनुरेऩन  12 शयीय ऩय अॊचगमा 13 भुॉह भें ऩान का फीड़ा 14 कभय भें कयधनी  15 हाथों भें कॊगन तथा चूड़ी 16 यत्न जड़ड़त विसबन्न आबूषण     आज के ऩरयऩेक्ष्म भें मदद श्ररॊगाय का अथज ििोरा जाएॊ तो रज्जा, सुशीरता, सॊतोष आदद जैसी फातें अचधकाॊशत् देखने को रोग तयस यहे हैं। कहाॉ तक चरी जाएगी श्ररॊगाय की ऩरयबाषा, मह कहना कदठन है ऩयन्तु मह तनष्श्चत है कक मह सफ करात्भक फातें , बािनाएॉ औय कवि की कल्ऩनाएॊ फस सरखने-ऩढ़ने तक ही सीसभत होकय यह जाएगी। श्ररॊगाय के आज जो सोरह आबूषण हभ देख यहे हैं, िह आऩकी दृष्टि से ककतने िास्त्तविक है मह सुचध 

 
 ऩाठक स्त्िमॊ तनणमज कय रें।      मह हैं आधुतनक 16 श्ररॊगाय- 1 हेमय स्त्ऩा 2 कररयगॊ  3 रयफॉष्न्डग  4 हेमय जैर  5 कन्सीरय  6 आई राइनय  7 आई शैडो 8 भस्त्काया 9 वऩमयससहॊ  10 फॉडी स्त्ऩा 11 नेर आिज  12 भैनीक्मोय  13 ऩैडीक्मोय  14 फॉडी भसाज़  15 अॊग उबारू औय दशाजऊ जीन्स, िॉऩ, कैप्री, हॉि ऩैन्ि आदद  

 
 16 भहिाकाऺाएॊ औय असन्तोष  

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