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कील

मानसश्री गोपाल राजू
पूर्व र्ैज्ञाननक
रुड़की - 247 667(उत्तराखण्ड)
www.bestastrologer4u.com
भर्न की, कार्व स्थल आदि की अथर्ा व्र्क्तत की रक्षा के ललए अनंत काल से रक्षा सूत्र, रक्षा कर्च, रक्षा रेखा, रक्षा र्ंत्र आदि का चलन िेखा जाता है। र्ह सिैर् िुलभवक्षों, अनहोनी घटनाओं, कुदृक्टट, मारण, उच्चाटन, वर्द्र्ेषण आदि तांत्रत्रक प्रर्ोगों से गुप्त रूप से सुरक्षा का कार्व करते रहे हैं, ऐसी मान्र्ता है। इस रक्षा-सुरक्षा क्रम-उपक्रम में ही कीलने अथर्ा कीलन का चलन भी प्रार्ः िेखने को लमलता है। वर्षर् के वर्द्र्ान स्थान को
भांनत-भांनत की कीलों से तंत्र क्रक्रर्ाओं द्र्ारा कील िेते हैं अथावत् एक सुरक्षा कर्च स्थावपत कर िेते हैं।
कीलन सुरक्षा की दृक्टट से तो क्रकर्ा ही जाता है परन्तु इसके वर्परीत ईटर्ाव-द्र्ेष, अनदहत की भार्ना, शत्रुर्त व्र्र्हार आदि के चलते भी स्थान का कीलन कर दिर्ा जाता है। फलस्र्रूप उस स्थान को िुभावग्र् घेरने लगता है और र्हााँ से सुख, शांनत, सम्पन्नता और प्रसन्नता का कीलन के िुटप्रभार् स्र्रूप पलार्न होने लगता है। स्र्ाथव र्श क्रकर्े गर्े इन िुटपररणामों का सरलता से ननिान भी नहीं लमल पाता।
कोई ज्ञानी व्र्क्तत जो केर्ल ननःस्र्ाथव भार् रखता है, कीलन का स्थान पता करके उसके प्रभार् को नटट कर सकता है। सुरक्षा की दृक्टट से क्रकर्े गर्े कुछ प्रर्ोग पाठकों के लाभाथव प्रस्तुत कर रहा हूाँ, ननःस्र्ाथव भार् से लाभ उठार्ें।
1. बारह अंगुल माप की पलाश की चार लकड़ड़र्ााँ लें। उन्हें कील की तरह नुकीला कर लें। ग्र्ारह माला 'ऊाँ शं शां लशं शीं शुं शूं शें शौं शं शः स्र्ः स्र्ाहा' मंत्र जपकर भर्न,
प्रनतटठान, िुकान आदि के चारों कोनों में गाड़ िें, र्हााँ हर प्रकार से रक्षा होगी।
2. र्ट र्ृक्ष की चार अंगुल की चार लटकती हुई जड़, चचत्रा नक्षत्र में काट लें। इन्हें चार इंच की लोहे की कील में बााँध िें। घर, प्रनतटठान, िुकान आदि के चार कोनों में गड्डा खोिकर पहले नाररर्ल का पानी नछड़क िें क्रफर इस कीलों को सीधा िबा िें, भर्न की सुरक्षा बनी रहेगी।
3. शुभ मुहूतव में पीपल, श्र्ेताकव, लसरस, िूर्ाव, खादिर, पलाश, अपामागव, शमी, कुश तथा गूलर की चार अंगुल की चार-चार जड़ें लेकर उन्हें एक साथ बााँध लें। भूलम, भर्न, प्रनतटठान आदि के चारों कोनों में उन्हें सर्ा हाथ गहरा गड्ढा खोिकर िबा िें। बुरी नज़र, आपिा, िुलभवक्षों, आदि से आपकी रक्षा बनी रहेगी।
4. जहााँ त्रबजली चगरी हो उस स्थान की लमट्टी लाकर चार इंच लोहे की चार कीलों में गीला कर के लगा िें। क्जस शत्रु से बिला लेना हो उसके घर, प्रनतटठान आदि के चारों ओर 'ऊाँ नमो र्ज्रपातार् सुरपनतराजा पर्नत हूं फट् स्र्ाहा' मंत्र जपते हुए िबा िें, उसका स्तम्भन होने लगेगा।
5. गूलर की चार अंगुल लकड़ी की कील बना लें। ग्र्ारह माला 'ऊाँ नमो भगर्ते रुद्रार् करालद्रटटार् (अमुक) पुत्र बान्धर्ैः सह हन हन िह िह पच पच शीघ्रं उच्चाटर् हुं फट् स्र्ाहा' मंत्र जपकर शत्रु के घर में िबा िें, उसका उच्चाटन होने लगेगा।
6. चचत्रा नक्षत्र में भर्न के चारों कोनों में चार इंच की चार कीलें िबा िें, िुलभवक्षों से भर्न की रक्षा होगी।
मानसश्री गोपाल राजू
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