रुद्राक्ष का योगदान अभूतपूर्व हो सकता है
रुद्राक्ष हिमालय की तलहटी, नेपाल, भूटान, इण्डोनेशिया आदि
में पाए जाने वाले एक दुर्लभ वृक्ष का फल है। अंग्रजी में इसको Utrasum Beed कहते हैं। संस्कृत में इसका नाम महरुद्राक्षः, शिवाक्ष, नील कंठाक्ष, बंगाल में
रुद्राक्य, तमिल में अक्कम, तेलगू में रुद्रचुल्ल,
आसाम में रुद्रई, लुद्राक, गुजरात तथा महाराष्ट्र में रुद्राक्ष आदि नामों से जाना जाता हैं। रुद्राक्ष
भगवान शिव का प्रिय आभूषण है। रुद्राक्ष धन-धान्य, सुख-आनन्द
आदि से लेकर धर्म एवं मोक्ष दाता माना गया है इसीलिए यह भौतिकवादी लोगों सहित योगी,
सन्यासी, तपस्वी, यति,
ऋषि-महर्षियों आदि सबका प्रिय है। यदि कहें कि इससे दैहिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहॉ तक कहा गया है कि इसके दर्शन मात्र से ही समस्त
पापों का नाश हो जाता है।
आज भारत ही नहीं समस्त विश्व में
रुद्राक्ष को लेकर शोध एवं विचार-विमर्श हो रहा है। इनके प्रयोग से आश्चर्यजनक प्रमाण
भी सामने आ रहे हैं। जर्मन रसायनशास्त्री डॉ.ब्रिहिमजमूर ने अपनी खोज में इसको कैंसर
जैसे लाइलाज रोग तक के लिए उपयोगी पाया है। बिट्रेनवासी पॉल हृूम ने अपनी पुस्तक ‘‘रुद्राक्ष’’ में इसको सैकड़ों विभिन्न रोगों में उपयोगी
बताया है। उन्होंने यहॉ तक लिख दिया है कि अभी तो मेरा यह शोध कार्य ही चल रहा है,
परन्तु मेरी मान्यता है या कहें कि मैं इस निष्कर्ष पर पहॅुचा हॅू कि
रुद्राक्ष के प्रयोग से भाग्य परिवर्तन तथा असम्भव से असम्भव कार्य को भी सम्भव बनाया
जा सकता है। योगी राज स्वामी सच्चिदानन्द जी ने कहा था कि मनुष्य जिस दिन रुद्राक्ष
को पूर्णता से समझ लेगा उस दिन कुछ भी अप्राप्य नहीं रहेगा। अमेरिकी समाज सुधारक महिला
सूसन ने इसका प्रयोग कर अनेक गृह-कलह के झगड़े सुलझाए हैं। कई प्रकरण तो ऐसे भी आए हैं
जहॉ पती-पत्नी के बीच हो रहे तलाक तक को उन्होंने रुद्राक्ष के प्रयोग से रुकवा दिया।
अनेक बांझ स्त्रियों पर रुद्राक्ष के प्रयोग से गर्भधारण हुआ, इसके प्रभाण तो मेरे पास हैं। अपने केन्द्र में रुद्राक्ष तथा अन्य उपक्रमों
से मैंने अनेक उच्च रक्त चाप रोगियों को सामान्य स्थिति तक पहॅुचाया है। आप भी परख
कर देखें - दो पॉच मुखी रुद्राक्ष के बीच में एक छः मुखी रुद्राक्ष डालकर गले में धारण
करें।
आयुर्वेद में रुद्राक्ष का अनेक
स्थानों पर नाम आता है। उनका मानना है कि यह त्रिदोषों (कफ, वात,
पित्त) का नाश करता है। योग निघंटु में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग
अनेक बीमारियों में लाभदायक माना गया है। प्रेत बाधा में इसका प्रयोग रामबाण सिद्ध
होता है। कुछ दुष्ट आत्माएं एक अबला से समागम करते थे। अबला को अर्धमूर्छित अवस्था
में बस यही अनुभव होता था कि अनेक बलिष्ठ कामान्ध पुरुष उसका नारित्व हनन कर रहे हैं।
इसके बाद वह हफ्तों सामान्य नहीं हो पाती थी। उस पर मेरा रुद्राक्ष का प्रयोग अनुभूत
सिद्ध हुआ।
आज हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह
है कि इस छोटे से फल की विलक्षणता को परखने के लिए हमारे पास पैनी दृष्टि का सर्वथा
अभाव है। बाजार में अधिकांशतः रुद्राक्ष के नाम पर इससे ही मिलते जुलते भद्राक्ष अथवा
नकली रुद्राक्ष मिलते हैं जिनका सुःप्रभाव हम नहीं भोग पाते और परिणाम स्वरुप मन में
रुद्राक्ष पर अनास्था जमा लेते हैं।
रुद्राक्ष तीन आकार तथा चार रंगों
में देखने को मिलता है। ऑवले के आकार के रुद्राक्ष सर्वोत्तम, बेर के आकार वाले मध्यम तथा चने के बराबर रुद्राक्ष नेष्ट माने गए हैं। रंगों
में लाल कत्थई से, सफेद, पीले तथा लाल तथा
लाल रुद्राक्ष मिलते हैं। परन्तु कत्थई-लाल रुद्राक्ष ही चलन में दिखते हैं,
अन्य रंग दुर्लभ हैं। तंत्र में विभिन्न रंगों के रुद्राक्ष का अलग-अलग
विधान है। प्रत्येक रुद्राक्ष में इसके ध्रुवों से मिली लाइने-सी खिची रहती हैं,
इनको ही मुख कहते हैं। विभिन्न मुखों के रुद्राक्षों का प्रभाव भी भिन्न
है। रुद्राक्ष एक से इक्कीस मुख तक के होते हैं परन्तु एक मुखी तथा पंद्रह से इक्कीस
मुखी रुद्राक्ष प्रायः दुर्लभ हैं। व्यवसायी लोग बड़ी सावधानी से एक अथवा अन्य दुर्लभ
मुखों के रुद्राक्ष नकली बनाकर बेच देते हैं। इनसे हमें सचेत रहना है, ताकि कहीं ठगे न जाएं।
पाठकों के लाभार्थ चौदह मुखी रुद्राक्ष
तक के विषय में संक्षिप्त-सा विवरण दे रहा हॅू, विषय के जिज्ञासु
कृपया किसी बौद्धिक लेखक के ग्रंथ भी विस्तृत ज्ञान के लिए देख सकते हैं।
एक मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष
के धारक को किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रह पाता है। इसको धारण करने से चित्त में प्रसन्नता, अक्षय लक्ष्मी की कृपा, रोग मुक्ति, व्यक्तित्व में निखार, शत्रु पर विजय तथा मनोवांछित इच्छाएं
पूर्ण होती हैं।
यह साक्षात् शिव का प्रतीक है।
इसका प्रतिनिधि ग्रह लालिमा युक्त उगता हुआ सूर्य है। इसके अतिरिक्त ऑखों की अनेक बीमारियों,
सिरदर्द तथा लिवर के रोगों में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। यदि यह
न सुलभ हो तो इसके स्थान पर एक ग्यारह मुखी रुद्राक्ष भी धारण किया जा सकता है। वैसे
तो कोई भी रुद्राक्ष अथवा उसकी माला धारण करने
से पूर्व उसकी प्राण प्रतिष्ठा, उसके मंत्र अथवा बीज मंत्र का
विनियोग, न्यास, करन्यास, अंग न्यास तथा ध्यान आदि से धारण करने का पूरा विस्तृत विधान है। परन्तु समयाभाव
में उसके बीज मंत्र का जप कर उसे प्रयोग करने से भी उत्तम रहता है, क्योंकि मेरी मान्यता है - कुछ नहीं से कुछ तो भला। एक मुखी रुद्राक्ष का जप
मंत्र है - ‘‘ॐ ह्रीं नमः’’। बीज ह्रीं
तथा ऐसे ही अन्य बीज मंत्रों आदि का शुद्ध उच्चारण किसी बौद्धिक व्यक्ति से पहले पता
कर लेना चाहिए क्योंकि मंत्र में अर्थ से अधिक उसके शुद्ध उच्चारण का महत्व अधिक है।
जब तक उच्चारण से नाड़ी तथा चक्रों में कम्पन नहीं होगा तब तक शरीर आवेशित नहीं होगा
और कार्य सिद्ध होने में भी संशय रहेगा।
द्विमुखी रुद्राक्ष
शिव
भक्तों को इसका धारण करना अधिक अनुकूल सिद्ध होता है। तामसिक वृत्तियों का परिहार कर
चित्त की एकाग्रता, मानसिक शान्ति, आध्यात्मिक उत्थान,
कुण्डलिनी जाग्रण आदि में इसका प्रयोग सर्वथा उपयुक्त रहता है। शिव शक्ति
के प्रतीक इस रुद्राक्ष का प्रयोग वशीकरण में भी किया जाता है।
सर्दी, कफ
आदि रोगों, पेट की बीमारियों विशेषकर कब्ज में यह अति लाभकारी
सिद्ध होता है। इसका प्रतिनिधि ग्रह चन्द्र है इसलिए सोमवार को शिवलिंग से स्पर्श कर
‘‘अर्धमाम्बर देवाय नमः’’ जपते हुए इसको
घारण करना चाहिए। इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ नमः’’ है।
त्रिमुखी रुद्राक्ष
इसको
अग्नि स्वरुप माना गया है इसीलिए यह त्र्याग्नि का प्रतिरुप है। इसको धारण करने से
व्यक्ति क्रियाशील रहता है। यदि व्यक्ति की नौकरी नहीं लग रही हो, बेकार हो अथवा रुग्ण हो तो इसे धारण करने से निश्चय ही कार्य सिद्ध होता है।
यह रुद्राक्ष विद्या प्रदाता है, इसलिए पढ़ने वाले लोगों को इसे
अवश्य धारण करना चाहिए। यह प्रबल शत्रु नाशक है।
रोगों में पीलिया रोग के लिए यह
रामबाण सिद्ध होता है। दूध में घिसकर प्रयोग करने से ऑख का जाला ठीक करता है। पेट के
रोगों में लाभदायक सिद्ध होता है। ज्वर अथवा ज्वरादि के कारण उत्पन्न निर्बलता को यह
दूर करने में सक्षम है। इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ क्लीं नमः’’
है। मंगल इसका प्रतिनिधि ग्रह है। इसको रविवार के दिन सूर्योदय के समय
‘‘ब्रह्म विष्णु देवाय नमः’’ मंत्र जपकर
धारण करना चाहिए।
चतुर्मुखी रुद्राक्ष
यह चतुर्मुख
ब्रह्म का प्रतीक है। बुद्धि, स्मरण शक्ति, साक्षात्कार, वाक शक्ति आदि के लिए यह कल्पतरु सिद्ध
होता है। सम्मोहन तथा वशीकरण में भी इसका प्रयोग उत्तम सिद्ध होता है। समाजिक प्रतिष्ठा
में इसका धारण करना उत्तम है।
दूध में उबाल कर इसे पिलाने से
अनेक मष्तिष्क रोग तथा स्नायु विकार ठीक हो जाते हैं। इसका प्रतिनिधि ग्रह बुध तथा
बीज मंत्र ‘‘ॐ ह्री नमः’’ है। गुरुवार के
दिन केले के वृक्ष से स्पर्श कराके ‘‘ब्रह्म देवाय नमः’’
मंत्र जपते हुए इसे धारण करना चाहिए।
पंचमुखी रुद्राक्ष
बहुतायत में उपलब्ध और तुलनात्मक रुप से अत्यंत
सस्ता यह रुद्राक्ष भगवान् शंकर का प्रतीक है। व्यवसायी वर्ग इन रुद्राक्षों को काट-छांट
कर चतुरता से अन्य कई मुखी रुद्राक्ष बना कर मंहगे दामों में बेचते हैं। शत्रु नाश
के लिए यह पूर्णतया फलदायी है। मानसिक शान्ति तथा प्रफुल्लता के लिए भी यह धारण करना
चाहिए। इसको धारण करने से जहरीले कीट-पतंगो आदि के काटने का भय नहीं रहता। इसका प्रतिनिधि
ग्रह गुरु है। सोमवार के दिन शिवलिंग से स्पर्श करके ‘‘ॐ नमः शिवाय’’ मंत्र का जाप करते हुए इसको धारण करना
चाहिए। इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ ह्री नमः’’ है।
षड्मुखी रुद्राक्ष
यह गणपति का प्रतीक है। व्यापार तथा तीक्ष्ण
बुद्धि के लिए यह उत्तम है। दुःख, दारिद्रय का शमनकर यह लक्ष्मी जी
की कृपा प्राप्त करवाता है। इसको धारण करने से घर में साक्षात् अन्नपूर्णा का वास होता
है।
हिस्टीरिया, मूर्छा, प्रदर तथा स्त्रियों की अन्य कुछ बीमारियों में
यह उपयोगी सिद्ध होता है। जो लोग फौज, पुलिस में हैं अथवा ऐसे
ही जोखिम भरे कायरें में लिप्त रहते हैं, उनको यह अवश्य प्रयोग
करना चाहिए। इसका प्रतिनिधि ग्रह शुक्र है तथा बीज मंत्र ‘‘ॐ
ह्री हुँ नमः’’ है। सोमवार के दिन ‘‘ॐ नमः
शिवाय, कार्तिकेय नमः’’ मंत्र जपते हुए
शिवलिंग से स्पर्श करवाकर इसे धारण करना चाहिए।
सप्तमुखी रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष मातृका का प्रतिनिधि है। यह दीर्घायुष्य
प्रदान करता है। इसका उपयोग मारकेश काल में करवाना उत्तम सिद्ध होता है। यह शस्त्र
प्रहार से रक्षा करता है। इससे अकाल मृत्यु टल जाती है। जन्मराशि से यदि साढ़ेसाती चल
रही हो तो यह अवश्य धारण कर लेना चाहिए।
सन्निपात, भीषण ज्वर, मूर्छा आदि रोगों में यह बहुत उपयोगी है।
इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ ह्री नमः’’ है। सोमवार
के दिन ‘‘ॐ नमः शिवाय, भगवान् ऋषि नमः’’
मंत्र जपते हुए इसको धारण करना चाहिए।
अष्टमुखी रुद्राक्ष
यह अष्ट देवों का प्रतिनिधि है। ज्ञान प्राप्ति, चित्र शान्ति एवं एकाग्रता के लिए इसका योगदान बेजोड़ है। कुण्डलिनी जागृत करने
वाले साधकों को यह अवश्य धारण करना चाहिए। व्यापार में संलग्न लोगों के लिए भी यह शुभदायक
है। जो लोग सट्टे, शेयर बाजार, घुड़दौड़ अथवा
अन्य अकस्मात् धन प्राप्ति के साधनों में लिप्त हैं उनके लिए यह अचूक सिद्ध हो सकता
है। यह रुद्राक्ष विघ्ननाशक है। तंत्र के प्रभाव को यह निष्क्रिय कर देता है।
पक्षाघात तथा जलोदर आदि रोगों में
यह बहुत उपयोगी है। इसका प्रतिनिधि ग्रह राहु है। इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ हुं नमः’’ है। किसी भी दिन यह ‘‘साध मंगल गणेशाय नमः’’ मंत्र जप कर धारण करना हितकर होता
है। नित्य इसे ऑख तथा आज्ञाचक्र पर स्पर्श करने से व्यक्ति प्रतिभावान बनता है।
नवमुखी रुद्राक्ष
यह नवशक्तियों
का प्रतीक है। हर प्रकार की साधनाओं में सफलता, प्रसिद्धि तथा सम्मान
प्राप्त करने में यह बेजोड़ है। दुर्गा से सम्बन्धित तंत्र एवं साधनादि में इससे सफलता
मिलती है। शत्रु शमन, मुकदमे में सफलता आदि के लिए यह उत्तम है।
वैसे तो यह प्रत्येक वर्ग के लिए लाभकारी है परन्तु महिलाओं के लिए यह विशेष शुभ है।
हृदय रोगों में यह लाभकारी है।
इसका ग्रह केतु है। ‘‘ॐ ह्री हुं नमः’’ इसका बीज मंत्र है। सोमवार को लाल धागे में यह ‘‘दुर्गाभ्या
नमः’’ मंत्र जपते हुए धारण करना चाहिए।
दशमुखी रुद्राक्ष
यह यम
का प्रतीक है। तंत्र क्षेत्र में इसका विशेष महत्व होता है। इसके प्रयोग से मारण, मोहन तथा उच्चाटनादि का कोई प्रभाव नहीं होता। दुर्घटना तथा अकाल मृत्यु से
यह रक्षा करता है। कुशााघ्र बुद्धि के लिए यह लाभकारी है।
मानसिक थकान तथा बीमारी के कारण
उपजी दुर्बलता का यह नाश करता है। यह पुत्र दायक है। पुत्र रत्न की कामना रखने वाले
को यह अवश्य धारण करना चाहिए। इसके प्रतिनिधि ग्रह नव ग्रह ही हैं। इसका बीज मंत्र
‘‘ॐ ह्री नमः’’ है। रविवार के दिन ‘‘भगवान विष्णवे नमः’’ मंत्र का जप करते हुए इसे दांयी
भुजा में लाल रंग के धागे में धारण करना चाहिए।
एकादशमुखी रुद्राक्ष
प्रयत्न साध्य यह रुद्र का प्रतीक है। स्त्रियों
के लिए यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पति की सुरक्षा, उनकी उन्नित सौभाग्य
तथा दीर्घायुष्य में प्रत्येक स्त्री को यह धारण करना उत्तम रहता है। सन्तान सुख देने
में भी यह उपयोगी है। घर में प्रसन्नता तथा सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए यह उपयोगी है।
यह संक्रामक रोगों का नाश करता है। इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ ह्री हुं
नमः’’ है। इष्टदेव के चरणों का स्पर्श कराकर यह धारण करें - सर्वत्र
विजयी होंगे।
द्वादशमुखी रुद्राक्ष
यह भगवान् विष्णु का प्रतीक है। इसे धारण करने
से ब्रह्मचर्य रक्षा तथा चेहरा ओजस्वी तथा तेजस्वी बनता है। शक्ति हीनता अनुभव में
आती हो तो यह अवश्य धारण करना याहिए। इसको धारण करने वाला व्यक्ति सदैव प्रसन्नचित्त
रहता है। यह रुप लावण्य तथा व्यक्तित्व में निखार लाता है। यह मान-प्रतिष्ठा दिलवाने
वाला रुद्राक्ष है।
यह दुर्घटना से रक्षा करता है।
इसको धारण करने वाले को विषभय नहीं होता। पीलिया रोग में यह बहुत लाभदायक सिद्ध होता
है। इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ क्रौं श्रौं रौं नमः’’ इसका प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है। इसे पीले धागे में ‘‘ॐ
सूर्याय देवाय नमः’’ मंत्र जपकर धारण करना चाहिए।
त्र्योदशमुखी रुद्राक्ष
यह कामदेव का प्रतीक है। प्रेम-स्नेह, धन, यश, मान, पद, प्रतिष्ठा आदि के लिए यह परम उपयोगी सिद्ध होता है।
अनेक इच्छाओं की पूर्ति के लिए इसे विशेष रुप से सिद्ध किया जाता है - इसका शास्त्रोक्त
विधि-विधान अलग से है। प्रशासनिक सेवा में उच्चपदाधिकारियों को यह अधिकार प्रदान करता
है। दूध में उबालकर पीने से पौरुष तत्व की वृद्धि करता है और नपुसंकता दूर करता है।
यह सब बाजीकरण विषय के अन्तर्गत आता है, जिसका विस्तृत प्रयोग
विधान अलग से है।
इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ ह्री नमः’’ है। इसे पीले अथवा लाल धागे में ‘‘इन्द्र देवाय नमः’’ मंत्र जप कर धारण करने का विधान है।
चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष
यह त्रिपुरारि का प्रतिनिधि है। इसका धारक बौद्धिकता
की राह पर चलता है। भक्ति और सच्चाई उसका अंग बनते हैं। जीवन में सुख-समृद्धि देने
में यह सक्षम है। इसे हनुमान जी का भी स्वरुप माना गया है। इसे धारण करने वाला साक्षात्
शिव रुप हो जाता है।
यह सर्वरोग हरणकारी है। इसको धारण
करने से व्यक्ति निरोग रहता है। इसका बीज मंत्र ‘‘ॐ नमः’’
है। सोमवार को शिवलिंग से स्पर्श कराकर ‘‘ॐ नमः
शिवाय’’ मंत्र जपकर इसे धारण करना चाहिए।
गौरी-शंकर रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष दुर्लभ है। बाजार में प्रायः मिलने
वाला गौरी-शंकर दो रुद्राक्षों को काटकर-चिपकाकर बनाया जाता है। इनको क्रय करते समय
सचेत तथा सावधान रहें, कहीं ठगे न जाएं। नामारुप यह मोक्षकारक है। इसके धारक
को कोई भी दैहिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक कमी कभी नहीं होती। इसको
इत्र लगाकर लाल कपड़े में रखा जाता है। यदि सौभाग्य से यह मिल जाए तो ‘‘शिव शक्ति रुद्राक्षाय नमः’’ मंत्र जपकर प्रयोग करना
चाहिए।
इन्द्राक्षी माला
एक मुख से इक्कीस मुख तक के दानों को माला का
रुप देकर इन्द्राक्षी माला बनायी जाती है। यह न हो तो एक से लेकर चौदह मुखी रुद्राक्ष
की भी इन्द्राक्षी माला बनायी जा सकती है। इसके धारक को समस्त देवी-देवताओं का आर्शीवाद
सुःलभ होता है - इसके बाद फिर तो फिर कुछ शेष रह ही नहीं जाता है।
अपने दीर्घ कालीन यायावर जीवन काल
में मैं अनेक धनकुबेर, नेता, अभिनेता,
साधु-संतो आदि से मिला परन्तु मुझे इक्कीस मुख तक रुद्राक्ष की इन्द्राक्षी
माला के दर्शन कभी नहीं हुए। मुम्बई प्रवास में एक मारवाड़ी सन्त ने दावा किया कि उनके
पास ऐसी माला है, परन्तु दिखाने वाली बात को वह सहजता से टाल
गए। हॉ, चौदह मुखी रुद्राक्ष की माला अनेक लोगों के पास मिल सकती
है। मुझे स्वयं इस माला के अनेक बार अनेक अनुभूत-अनुकूल अनुभव होते रहे हैं।
अन्ततः यही कहॅूगा कि अब समय आ
गया है कि हम व्यवसायिकता से दूर पुनः जागृत होकर भारतीय गुह्य विद्याओं को सही वैज्ञानिक
रुप में विश्व के सामने प्रस्तुत करें जिससे कि निरीह जनमानस का इस प्रकार के पदाथरें
से वास्तव में लाभ हो सके और इसमें दिव्य गुणों से परिपूर्ण रुद्राक्ष का योगदान अभूतपूर्व
सिद्ध हो सकता है।
गोपाल राजू (वैज्ञानिक)